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भारत का इतिहास

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भारत का इतिहास


                भारत का इतिहास 



👉 भारत का इतिहास  ➡️ 

1. उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में समुद्र तक फैला यह उपमहाद्वीप भारतवर्ष के नाम से जाना जाता है। भारत को महाकाव्य तथा पुराणों में भारतवर्ष की अर्थात् भरतों का देश कहा जाता है। भारत के निवासियों को भारती अर्थात् भरत की संतान कहा जाता है। 


2. भरत एक कबीले का नाम था। प्राचीन भारतीय अपने देश को जम्बूद्वीप अर्थात् जम्बू ( जामुन ) वृक्षों का द्वीप कहते हैं। प्राचीन ईरानी इसे सिन्धु नदी के नाम से जोड़ते थे , जिसे वे सिन्धु न कहकर हिन्दू कहते थे। यही नाम फिर पूरे पश्चिमी में फ़ैल गया।


3. पूरे देश को इसी नदी के नाम से जाना जाने लगा। यूनानी इसे इंदे और अरब इसे हिन्द कहते थे। मध्यकाल में इस देश को हिन्दुस्तान कहा जाने लगा। यह शब्द यह शब्द भी फारसी शब्द हिन्दू से बना है। 


4. यूनानी भाषा के इंदे के आधार पर अंग्रेज इसे इंडिया कहने लगे। 


5. विंध्य की पर्वत - श्रृंखला देश को देश को उत्तर और दक्षिण दो भागों में बाॅटती है। उत्तर में इंडो यूरोपीय परिवार की भाषाएं बोलने वालों की दक्षिण में द्रविड़ परिवार की भाषाएं बोलने वालों का बहुमत है ।


नोट   भारत की जनसंख्या का निर्माण जिन प्रमुख नस्लों के लोगों से हुआ है  वे इस प्रकार है - प्रोटो - आस्ट्रेलायड़ , पैलियो - मेडिटेशन , काकेशायड  , निग्रोयड  और मंगोलायड।


6. भारतीय इतिहास को अध्ययन की दृष्टि से तीन भागों में बांट गया है -:


1. प्राचीन भारत 

2. मध्यकालीन भारत 

3. आधुनिक भारत 


नोट  सबसे पहले इतिहास को तीन भागों में बांटने का श्रेय जर्मन इतिहासकार क्रिस्टोफ सेल्सियस को है। 1638  -  1707


                         प्राचीन भारत 

1.प्राचीन भारतीय इतिहास के स्त्रोत-: 

प्राचीन भारतीय इतिहास के विषय में जानकारी मुख्य: चार स्त्रोत से प्राप्त होती है -  1. धर्मग्रंथ  2. ऐतिहासिक ग्रंथ  3. विदेशियों का विवरण  4. पुरातत्व - संबंधी साक्ष्य 


1. धर्मग्रंथ एवं ऐतिहासिक ग्रंथ से मिलनेवाली महत्वपूर्ण जानकारी ➡️ 


भारत का सर्वप्राचीन धर्मग्रंथ वेद है , जिसके संकलन कर्ता महर्षि कृष्ण द्वैपायन वेदव्यास को माना जाता है। वेद बसुद्धैव कुटुम्ब का उपदेश देता है। भारतीय परम्परा वेदों को नित्य तथा अपौरुषेय मानती है। वेद चार है  -  ऋग्वेद , यजुर्वेद , सामवेद , एवं अथर्ववेद।


ऋग्वेद 


ऋचाओं के क्रमबद्ध ज्ञान के संग्रह को ऋग्वेद कहा जाता है। इसमें 10 मंडल ,1028 सुक्त ( वालाखिल्य पाठ के 11 सूक्तों सहित ) एवं 10462 ऋचाएं है। इस वेद के ऋचाओं के पढ़ने वाले ऋषि को होतृ कहते हैं। इस वेद के से आर्य के राजनीतिक प्रणाली इतिहास एवं ईश्वर की महिमा के बारे में जानकारी मिलती है। 


विश्वामित्र द्वारा रचित ऋग्वेद के तीसरे मंडल में सूर्य देवता सावित्री को समर्पित प्रसिद्ध गायत्री मंत्र है। इसके 9वें मंडल में सोम देवता का उल्लेख है। 


इसके 8वें मंडल की हस्तलिखित ऋचाओं को खिल कहा जाता है। 


चातुर्वर्ण्य समाज की कल्पना का आदि स्त्रोत श्रग्वेद के 10वे मंडल में वर्णित पुरुष सूक्त हैं , जिसके अनुसार चार वर्ण ( ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य  तथा शूद्र ) आदि पुरुष ब्रह्मा के क्रमशः मुख , भुजाओं , जंघाओं और चरणों से उत्पन्न हुए।


नोट  धर्मसूत्र चार प्रमुख जातियों की स्थितियों , व्यवसायों , दायित्वों , कर्तव्यों तथा विशेषाधिकार में स्पष्ट विभेद करता है।


ऋग्वेद के कई परिच्छेदों में प्रयुक्त अधन्य शब्द का संबंध गाय से है।



ईसा पूर्व एवं ईसवी


वर्तमान में प्रचलित ग्रेगोरियन कैंलेंडर ( ईसाई कैंलेंडर / जूलियन कैलेंडर ) ईसाई धर्मगुरु ईसा मसीह के जन्म - वर्ष ( कल्पित ) पर आधारित है। ईसा मसीह के जन्म के पहले के समय को ईसा पूर्व कहा जाता है। ईसा पूर्व में वर्षों की गिनती उल्टी की जाती है , जैसे महात्मा बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व में एवं मृत्यु 483 ईसा पूर्व में हुआ। यानी ईसा मसीह के जन्म के 563 वर्ष पूर्व महात्मा बुद्ध का जन्म हुआ और 483 पूर्व मृत्यु हुई।


ईसा मसीह की जन्म तिथि से आरंभ हुआ सन् , ईसवी सन् कहलाता है , इसके लिए संक्षेप में ई. लिखा जाता है। ई. को लैटिन भाषा के शब्द A.D में भी लिखा जाता है। 


विन्सेट आर्थर स्मिथ ने प्राचीन भारत का पहला सुव्यवस्थित इतिहास अर्ली हिस्ट्री ऑफ इंडिया 1904 में तैयार किया। इस पुस्तक के एक - तिहाई भाग में केवल सिकन्दर का आक्रमण वर्णित किया। इसमें भारत को स्वेच्छाचारी शासन चलाने वाले देश कहा गया है , जिसे ब्रिटिश शासन की स्थापना से पहले कभी राजनीतिक एकता का अनुभव नहीं हुआ था। उन्होंने लिखा है " वस्तु: भारतीय इतिहासकारों का सरोकार शासन के एक मात्र स्वरूप तानाशाही से ही है। " 


वामनावतार के तीन पगों के आख्यान का प्राचीन स्त्रोत श्रग्वेद है।


ऋग्वेद में इंद्र के लिए 250 तथा अग्नि के लिए 200 ऋचाओं की रचना की गयी है।


नोट  प्राचीन इतिहास के साधन के रूप में वैदिक साहित्य में ऋग्वेद  के बाद शतपथ ब्राह्मण का स्थान है।


यजुर्वेद  

सस्वर पाठ के लिए मंत्रों तथा बलि के समय अनुपालन के लिए नियमों का संकलन यजुर्वेद कहलाता है। इसके पाठ कर्ता को अध्वर्थु कहते हैं।



इसमें बलिदान विधि का भी वर्णन मिलता है।


यजुर्वेद में यज्ञों के नियमों एवं विधि - विमानों का संकलन मिलता है।


यह एक ऐसा वेद है जो गघ और पघ दोनों में है।


सामवेद 

' साम ' का शाब्दिक अर्थ है गान। इस वेद में मुख्यतः यज्ञों के अवसर पर गाये जाने वाले ऋचाओं ( मंत्रों ) का संकलन है। इसके पाठ कर्ता को उद्रातृ कहते हैं। इसका संकलन ऋग्वेद पर आधारित है। इसमें 1810 सूक्त हैं जो प्रायः ऋग्वेद से लिए गए हैं। 


इसे भारतीय संगीत का जनक कहा जाता है।


नोट  यजुर्वेद तथा सामवेद में किसी भी विशिष्ट ऐतिहासिक धटना का वर्णन नहीं मिलता है।


अथर्ववेद 

अथर्वा ऋषि द्वारा रचित इस वेद में कूल 731 मंत्र तथा लगभग 6000 पघ है। इसके कुछ मंत्र ऋग्वैदिक मंत्रों से भी प्राचीनतर है। औषधियों का उल्लेख सबसे पहले अथर्व वेद में मिलता है। 


ऐतिहासिक दृष्टि से अथर्ववेद का महत्व इस बात में है कि इनमें सामान्य मनुष्यों के विचारों तथा अंधविश्वासों का विवरण मिलता है। 


पृथिवी सूक्त अथर्व वेद का प्रतिनिधित्व सूक्त माना जाता है। इसमें मानव जीवन के सभी पक्षों - गृह निर्माण , कृषि की उन्नति , व्यापारिक प्रणय गीतों , राजभक्ति , राजा का चुनाव , बहुत से वनस्पतियों एवं औषधियों , शाप , वशीकरण , प्रायश्चित्त , मातृभूमि , महात्म्य आदि का विवरण दिया है। कुछ मंत्रों में जादू - टोने का भी वर्णन है। 


अथर्ववेद में परीक्षित को कुरुओं का राजा कहा गया है तथा कुरू देश की समृद्धि का अच्छा चित्रण मिलता है।


इसमें सभा एवं समिति को प्रजापति की दो पुत्रियाॅ  कहा गया है।


वेदों की कई शाखाएं हैं जो वैदिक अध्ययन और व्याख्या से जुड़े विभिन्न दृष्टिकोणों का प्रतिनिधित्व करती है। शाकल शाखा ऋग्वेद से जुड़ी एकमात्र जीवित शाखा है। यजुर्वेद को शुक्ल यजुर्वेद और कृष्ण यजुर्वेद दो शाखाओं में बांटा गया है। माध्यन्दिन और काण्ड शुक्ल यजुर्वेद अथवा वाजसनेय संहिता कि शाखाएं हैं। कृष्ण यजुर्वेद से जुड़ी शाखाएं - काटकर , कनिष्ठल , मैत्रायणी और तैत्तिरीय है। कौथुम , राणायनीय एवं जैमीनीय या तलवकार , सामवेद  की शाखाएं हैं। अथर्ववेद की शाखाएं शौनक और पैप्पलाद है।


नोट  सबसे प्राचीन वेद एवं सबसे बाद का वेद अथर्ववेद है।


ब्रह्माण , आरण्यक , तथा उपनिषद 


संहिता के परचात ब्रह्माणों , आरण्यकों , तथा उपनिषदों का स्थान है। इनसे उत्तर वैदिक कालीन समाज एवं संस्कृति के विषय में जानकारी प्राप्त होती है।


ब्राह्मण ग्रन्थ वैदिक संहिताओं की व्याख्या करने के लिए गघ में लिखें गए हैं। प्रत्येक संहिता के लिए अलग - अलग ब्राह्मण ग्रन्थ है जिसे सारणी में दिया गया है।


इन ब्राह्मण ग्रन्थों से हमें परीक्षित के बाद बिम्बिसार के पूर्व की घटनाओं का ज्ञान प्राप्त होता है ।


ऐतरेय में राज्याभिषेक के नियम एवं कुछ प्राचीन राजाओं के नाम दिए गए हैं।


शतपथ में गांधार , शल्य , कैकय , कुरू , पंचाल , कोसल , विदेह आदि राजाओं का उल्लेख मिलता है।


वैदिक साहित्य में ऋग्वेद के बाद शतपथ ब्राह्मण का स्थान है।


आरण्यक में यज्ञ से जुड़े कर्मकाण्डों की दर्शनिक और प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति है।


उपनिषदों की संख्या 108 है , जिसमें 13 को मूलभूत उपनिषदों की श्रेणी में रखा गया है। इसमें यज्ञ से जुड़े दार्शनिक विचार , शरीर , ब्रह्माण , आत्मा तथा ब्रह्म , की व्याख्या की गई है।


स्त्री की सर्वाधिक गिरी हुई स्थिति मैत्रायनी संहिता से प्राप्त होती है जिसमें जुआं और शराब की भांति स्त्री को पुरुष का तीसरा मुख्य दोषी बताया गया है।


शतपथ ब्राह्मण में स्त्री को पुरुष की अर्धांगिनी कहा गया है । 


जाबालोपनिषद् में चारों आश्रमों का उल्लेख मिलता है।


स्मृतियों में सबसे प्राचीन एवं प्रमाणित मनुस्मृति मानी जाती है। यह शुंग काल का मानक ग्रंथ है । नारद स्मृति गुप्त युग के विषय में जानकारी प्रदान करता है।


बेदाग एवं सूत्र  


वेदों को भली-भांति समक्षने के लिए छह वेदांगों की रचना हुई है। ये हैं - शिक्षा ( शुद्ध उच्चारण शास्त्र ) , कल्प  ( कर्मकाण्डीय विधि ) निरूक्त ( शब्दों की व्युत्पत्ति का शास्त्र ) , व्याकरण , छ्न्द व ज्योतिष।























  


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