पीलिया की संपूर्ण जानकारी
आपके कभी किसी नवजात बच्चे के नाखूनों या आंखों के सफेद भाग में अचानक पीलापन देखा होगा । यह पीलिया का लक्षण हो सकता है । जो शरीर में लिवर द्वार उत्पन्न कि गई बीमारी है । पीलिया का मुख्य कारण जब शरीर में लाल रक्त कोशिकाएं टूटती है तो वे बिलीरुबिन नामक पीले-नारंगी वर्णक का उत्पादन करती हैं। आम तौर पर, आपका शरीर लिवर के माध्यम से इस बिलीरुबिन का उत्सर्जन करता है। हालांकि, पीलिया रोग प्रभावित व्यक्तियों के लीवर बिलीरुबिन के उत्सर्जन में रुकावट करते हैं।
पीलिया आपके शरीर में स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं उत्पन्न कर सकता है। पीलिया के शुरुआती लक्षणों की जांच में आप घर पर भी कुछ आयुर्वेदिक तरीके अपनाकर पीलिया से निजात आप सकते हैं। आइए पीलिया के बारे में विस्तृत रूप से जानें।
1. पीलिया रोग कैसे फैलता है ➡️
पीलिया खुद में एक बीमारी नहीं, बल्कि लिवर से जुड़ी समस्याओं का लक्षण है। यह तब होता है जब शरीर में बिलीरुबिन (Bilirubin) नामक पिगमेंट की मात्रा बढ़ जाती है, जिससे त्वचा और आंखें पीली दिखाई देने लगती हैं।
2. पीलिया कितने प्रकार का होता है ➡️
पीलिया (Jaundice) एक ऐसी स्थिति है जिसमें त्वचा, आंखों का सफेद भाग और शारीरिक तरल पदार्थ पीले रंग के हो जाते हैं। यह मुख्य रूप से बिलीरुबिन नामक पदार्थ की अधिकता के कारण होता है। पीलिया के मुख्य रूप से तीन प्रकार होते हैं
1. प्री-हेपेटिक पीलिया :-
यह पीलिया तब होता है जब लाल रक्त कोशिकाएं अत्यधिक मात्रा में टूटती हैं (हेमोलिसिस), जिससे बिलीरुबिन की मात्रा बढ़ जाती है।
मुख्य कारण :-
मलेरिया, सिकल सेल एनीमिया, थैलेसीमिया
ऑटोइम्यून बीमारियां
कुछ विषैले पदार्थ
लक्षण :- पीली त्वचा, कमजोरी, एनीमिया, तिल्ली का बढ़ना।
2. हेपेटिक पीलिया :-
यह तब होता है जब लिवर (यकृत) में बिलीरुबिन को ठीक से प्रोसेस करने की क्षमता कम हो जाती है।
मुख्य कारण :-
हेपेटाइटिस (A, B, C, D, E), फैटी लिवर
लिवर सिरोसिस, शराब के अधिक सेवन से लिवर डैमेज
लिवर कैंसर या दवाओं का दुष्प्रभाव
लक्षण :- भूख न लगना, पेट में दर्द, कमजोरी, गहरे रंग का पेशाब, हल्के रंग का मल।
3. पोस्ट-हेपेटिक पीलिया या ऑब्स्ट्रक्टिव पीलिया :-
- यह तब होता है जब पित्त नलिकाओं में रुकावट आ जाती है, जिससे बिलीरुबिन शरीर से बाहर नहीं निकल पाता।
मुख्य कारण :-
गॉलब्लैडर स्टोन (पित्त की पथरी), ट्यूमर, पित्त नलिका में संक्रमण या कैंसर
जन्मजात पित्त नलिका विकार
लक्षण :- त्वचा में खुजली, गहरे रंग का मूत्र, हल्के रंग का मल, पेट में सूजन।
3. पीलिया के लक्षण ➡️
अ पीलिया एक ऐसी स्थिति है जिसमें त्वचा, आंखों का सफेद भाग और मूत्र पीला हो जाता है। यह आमतौर पर लिवर से संबंधित समस्याओं के कारण होता है। इसके मुख्य लक्षण इस प्रकार हैं:
पीलिया के लक्षण :-
1. त्वचा और आंखों में पीलापन : – यह पीलिया का प्रमुख संकेत है।
2. गहरे रंग का मूत्र : – पेशाब का रंग गहरा पीला या भूरा हो सकता है।
3. हल्का या सफेद रंग का मल : – मल का रंग सामान्य से हल्का या सफेद हो सकता है।
4. थकान और कमजोरी : – शरीर में ऊर्जा की कमी महसूस होती है।
5. भूख न लगना :– खाने की इच्छा कम हो जाती है।
6. मतली और उल्टी :– पाचन से जुड़ी समस्याएं हो सकती हैं।
7. पेट दर्द और सूजन :– विशेष रूप से पेट के ऊपरी दाएं हिस्से में दर्द हो सकता है।
8. खुजली :– त्वचा में अत्यधिक खुजली महसूस हो सकती है।
यदि पीलिया के लक्षण दिखाई दें तो क्या करें
तुरंत डॉक्टर से परामर्श लें।
भरपूर मात्रा में पानी पिएं और हल्का व सुपाच्य भोजन करें।
शराब और तैलीय भोजन से बचें।
4. पीलिया रोग के कारक क्या है ➡️
पीलिया मुख्य रूप से शरीर में बिलीरुबिन नामक पित्त रंगद्रव्य के असामान्य रूप से बढ़ने के कारण होता है। यह त्वचा, आंखों और मूत्र के पीले पड़ने का कारण बनता है।
पीलिया के मुख्य कारण :-
1. यकृत (लीवर) संबंधी रोग :– जैसे हेपेटाइटिस, लिवर सिरोसिस, फैटी लिवर आदि।
2. पित्त नलिकाओं में अवरोध : – जैसे पित्त की पथरी या ट्यूमर।
3. रक्त संबंधी विकार : – जैसे हीमोलाइटिक एनीमिया, थैलेसीमिया आदि, जिनमें लाल रक्त कोशिकाएं तेजी से टूटती हैं।
4. संक्रमण (इन्फेक्शन) : – हेपेटाइटिस वायरस (A, B, C, D, E), मलेरिया, टाइफाइड आदि।
5. शराब का अधिक सेवन :– जिससे लीवर खराब हो सकता है।
6. अन्य कारण : – कुछ दवाइयों के दुष्प्रभाव, आनुवंशिक विकार, नवजात शिशुओं में अपरिपक्व लीवर आदि।
5. पीलिया किसे हो सकता है ➡️
पीलिया किसी भी उम्र के व्यक्ति को हो सकता है, लेकिन यह विशेष रूप से निम्नलिखित लोगों को प्रभावित कर सकता है :-
1. नवजात शिशु : – जन्म के बाद पहले कुछ दिनों में नवजात शिशुओं में पीलिया आम होता है, जिसे नवजात पीलिया कहते हैं।
2. लीवर रोग से ग्रसित लोग :– जिन लोगों को हेपेटाइटिस (A, B, C, D, E), सिरोसिस, या लीवर कैंसर जैसी बीमारियाँ होती हैं, उन्हें पीलिया होने की संभावना अधिक होती है।
3. अल्कोहल और ड्रग्स का अधिक सेवन करने वाले लोग : – अत्यधिक शराब या कुछ दवाओं का अधिक सेवन लीवर को नुकसान पहुंचा सकता है, जिससे पीलिया हो सकता है।
4. गॉल ब्लैडर और पित्त नली की समस्या वाले लोग :– यदि पित्त नली में रुकावट होती है (जैसे गॉलब्लैडर स्टोन या ट्यूमर), तो शरीर से बिलीरुबिन नहीं निकल पाता और पीलिया हो सकता है।
5. संक्रमण या खून की बीमारियों से ग्रसित लोग :– कुछ बैक्टीरियल और वायरल संक्रमण, या रक्त संबंधी विकार (जैसे हीमोलाइटिक एनीमिया) के कारण भी पीलिया हो सकता है।
यदि किसी को पीलिया के लक्षण दिखते हैं, जैसे त्वचा और आंखों का पीला पड़ना, पेशाब का गहरा रंग होना, थकान या भूख न लगना, तो तुरंत डॉक्टर से परामर्श लेना चाहिए।
6.पीलिया रोग की जटिलताएं ➡️
पीलिया कोई स्वतंत्र रोग नहीं, बल्कि यकृत (लिवर) से संबंधित समस्याओं का एक लक्षण है। यह शरीर में बिलीरुबिन नामक पिग्मेंट के असंतुलन के कारण होता है। यदि पीलिया का सही समय पर उपचार न किया जाए, तो यह कई जटिलताओं को जन्म दे सकता है। इसकी कुछ प्रमुख जटिलताएं निम्नलिखित हैं :-
1. यकृत (लिवर) की विफलता :-
यदि पीलिया लंबे समय तक बना रहता है, तो यह लिवर की कार्यक्षमता को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है, जिससे लिवर फेलियर का खतरा बढ़ जाता है।
2. हेपेटाइटिस और सिरोसिस :-
पीलिया यदि हेपेटाइटिस वायरस या शराब के अधिक सेवन के कारण हुआ है, तो यह लिवर सिरोसिस का कारण बन सकता है, जिससे लिवर सिकुड़ने और कठोर होने लगता है।
3. तंत्रिका तंत्र की समस्या (नवजात शिशुओं में ) :-
नवजात शिशुओं में अत्यधिक पीलिया के कारण " कर्निक्टेरस " नामक स्थिति उत्पन्न हो सकती है, जिससे दिमाग को स्थायी क्षति हो सकती है।
4. पित्त नलिकाओं में रुकावट :-
यदि पीलिया पित्त नलिकाओं में रुकावट के कारण हुआ है, तो यह गॉलब्लैडर स्टोन या पित्त नलिकाओं के संक्रमण को जन्म दे सकता है।
5. रक्त में संक्रमण :-
यदि पीलिया किसी गंभीर संक्रमण के कारण हुआ है, तो यह रक्त संक्रमण का कारण बन सकता है, जिससे अंग विफलता और मृत्यु तक हो सकती है।
6. गुर्दे की समस्या :-
दीर्घकालिक पीलिया किडनी की कार्यक्षमता को प्रभावित कर सकता है, जिससे किडनी फेल होने का खतरा बढ़ जाता है।
7. वजन घटना और कमजोरी :-
पुराने या दीर्घकालिक पीलिया के मामलों में भूख कम हो जाती है, जिससे कुपोषण और कमजोरी बढ़ जाती है।
8. त्वचा में खुजली :-
कुछ मामलों में, शरीर में बिलीरुबिन की अधिकता के कारण त्वचा में तेज खुजली हो सकती है, जिससे रोगी को असहजता महसूस होती है।
7. पीलिया रोग में शरीर के प्रभावित होने वाले अंग ➡️
पीलिया मुख्य रूप से यकृत से जुड़ी एक समस्या है, लेकिन यह शरीर के कई अन्य अंगों को भी प्रभावित कर सकता है। पीलिया के दौरान प्रभावित होने वाले मुख्य अंग निम्नलिखित हैं :-
1. यकृत :– पीलिया का सीधा संबंध लिवर से होता है क्योंकि यह शरीर में बिलीरुबिन को नियंत्रित करता है। लिवर की खराबी के कारण बिलीरुबिन की मात्रा बढ़ जाती है, जिससे त्वचा और आंखें पीली हो जाती हैं।
2. पित्ताशय : – यदि पित्त नलिकाओं में रुकावट होती है, तो बिलीरुबिन का प्रवाह बाधित हो सकता है, जिससे पीलिया हो सकता है।
3. अग्न्याशय : – अग्न्याशय के रोग, विशेष रूप से कैंसर या सूजन, पित्त नलिकाओं को बाधित कर सकते हैं और पीलिया का कारण बन सकते हैं।
4. त्वचा : – शरीर में बिलीरुबिन की अधिकता के कारण त्वचा का रंग पीला पड़ जाता है।
5. आंखें : – पीलिया के कारण आंखों का सफेद भाग पीला हो जाता है।
6. गुर्दे : – अत्यधिक बिलीरुबिन और लिवर की खराबी से गुर्दों पर दबाव पड़ सकता है, जिससे पेशाब का रंग गहरा हो सकता है।
7. मस्तिष्क : – नवजात शिशुओं में कर्निक्टेरस नामक गंभीर स्थिति हो सकती है, जिसमें अत्यधिक बिलीरुबिन मस्तिष्क को प्रभावित करता है और तंत्रिका तंत्र को नुकसान पहुंचा सकता है।
8. पीलिया रोग की जांच कैसे की जाती है ➡️
पीलिया (Jaundice) की जांच करने के लिए विभिन्न तरीकों का उपयोग किया जाता है। आमतौर पर डॉक्टर लक्षणों की जांच करने के बाद कुछ परीक्षणों की सलाह देते हैं।
1. शारीरिक परीक्षण :-
त्वचा और आंखों के सफेद भाग का पीला होना
पेट में सूजन या दर्द
पेशाब का गहरा रंग
2. रक्त परीक्षण :-
बिलिरुबिन टेस्ट :- शरीर में बिलिरुबिन का स्तर मापा जाता है।
लिवर फंक्शन टेस्ट -: यकृत के एंजाइम और प्रोटीन के स्तर की जांच की जाती है।
CBC :- शरीर में संक्रमण या एनीमिया की जांच की जाती है।
एचबीवी और एचसीवी टेस्ट :- हेपेटाइटिस बी और सी वायरस के संक्रमण की जांच के लिए।
3. मूत्र परीक्षण :-
बिलिरुबिन और यूरोबिलिनोजेन का स्तर मापा जाता है।
अगर यूरोबिलिनोजेन की मात्रा बढ़ी हुई हो, तो यह लिवर संबंधी समस्या का संकेत हो सकता है।
4. इमेजिंग टेस्ट :-
अल्ट्रासाउंड -: लिवर, गॉलब्लैडर और पित्त नलियों की स्थिति की जांच।
सीटी स्कैन या एमआरआई -: लिवर और पित्त नलियों की अधिक विस्तृत जानकारी के लिए।
ERCP -: पित्त नलियों में रुकावट की जांच के लिए।
5. लिवर बायोप्सी :-
अगर डॉक्टर को संदेह हो कि लिवर को गंभीर क्षति हुई है (जैसे हेपेटाइटिस, सिरोसिस या कैंसर), तो लिवर बायोप्सी की जाती है, जिसमें लिवर से ऊतक का एक छोटा नमूना लेकर जांच की जाती है।
9. पीलिया रोग होने पर डॉक्टर से कब मिलना चाहिए ➡️
पीलिया (Jaundice) में डॉक्टर से मिलने की जरूरत तब होती है जब :-
1. त्वचा और आंखों का रंग पीला होने लगे।
2. गहरा पीला या भूरा पेशाब आ रहा हो।
3. मल का रंग हल्का या सफेद हो जाए।
4. थकान, कमजोरी, या चक्कर महसूस हो।
5. भूख कम हो जाए और वजन घटने लगे।
6. पेट दर्द या सूजन हो।
7. बुखार या ठंड लग रही हो , जो संक्रमण का संकेत हो सकता है।
यदि इनमें से कोई भी लक्षण दिखें, तो तुरंत डॉक्टर से सलाह लें। विशेष रूप से यदि यह लक्षण नवजात शिशु, बुजुर्ग या पहले से किसी लिवर संबंधी बीमारी वाले व्यक्ति में दिखें, तो देरी न करें।
10.पीलिया रोग में डाॅक्टर द्वारा दि जाने वाली दवाएं ➡️
पीलिया एक लक्षण है, न कि एक स्वतंत्र रोग। इसका उपचार पीलिया के कारण पर निर्भर करता है। डॉक्टर आमतौर पर निम्नलिखित प्रकार की दवाएं दे सकते हैं :-
1. वायरल हेपेटाइटिस A, B, C, E) के लिए -
हेपेटाइटिस B और C :- एंटीवायरल दवाएं जैसे एंटीकैविर , टेनोफोविर , इंटरफेरॉन
हेपेटाइटिस A और E :- कोई विशिष्ट दवा नहीं, सिर्फ आराम, हाइड्रेशन और लिवर सपोर्टिव थेरेपी
2. लीवर सिरोसिस या फैटी लिवर के लिए :-
उर्सोडिओक्सिकोलिक एसिड
लिवर सपोर्टिव सप्लीमेंट्स (सिलिमारिन , लीवर टॉनिक, विटामिन B, C, E) :-
डाययूरेटिक्स (अगर शरीर में सूजन हो तो) जैसे स्पाइरोनोलैक्टोन
3. हेपेटिक इंफेक्शन या बैक्टीरियल इन्फेक्शन के लिए :-
एंटीबायोटिक्स जैसे रिफैक्सिमन , नियोमाइसिन
4. गॉलब्लैडर स्टोन या ब्लॉकेज के लिए :-
अगर स्टोन है तो सर्जरी
दर्द के लिए एंटी-स्पास्मोडिक
5. ड्रग-इंड्यूस्ड या टॉक्सिन-इंड्यूस्ड पीलिया :-
लीवर डिटॉक्सिफिकेशन के लिए :- ग्लूटाथिओन सपोर्ट
11.पीलिया रोग में क्या खाना चाहिए ➡️
का पीलिया रोग में सही आहार बहुत महत्वपूर्ण होता है क्योंकि यह लिवर से जुड़ी बीमारी है। पाचन को आसान बनाने और लिवर को स्वस्थ रखने के लिए हल्का, पौष्टिक और कम वसा वाला आहार लेना चाहिए।
1. फल और जूस :-
पपीता, सेब, नाशपाती, मौसमी, अनार, तरबूज
गन्ने का रस (डॉक्टर की सलाह पर)
नींबू पानी
नारियल पानी
2. हरी सब्जियां :-
पालक, लौकी, तोरई, टिंडा
गाजर और चुकंदर का रस
उबली हुई या सूप के रूप में सब्जियां
3. अनाज और दलहन :-
दलिया, ओट्स, ब्राउन राइस
मूंग दाल (हल्की और बिना तड़के की हुई)
खिचड़ी और सूप
4. डेयरी उत्पाद (कम मात्रा में )
छाछ
टोंड दूध
5. सूखे मेवे और बीज :-
भिगोए हुए बादाम और किशमिश
अलसी और तिल के बीज
12.पीलिया रोग में क्या खाना चाहिए ➡️
पीलिया होने पर लिवर कमजोर हो जाता है, इसलिए खान-पान का विशेष ध्यान रखना जरूरी होता है। इस दौरान निम्नलिखित चीजें नहीं खानी चाहिए :-
1. वसा और तले-भुने खाद्य पदार्थ :-
डीप फ्राइड चीजें (पकौड़े, समोसे, कचौरी)
ज्यादा तेल या घी से बनी चीजें
बटर, क्रीम और फास्ट फूड
2. मांसाहार और भारी प्रोटीन :-
रेड मीट (मटन, बीफ, पोर्क)
अधिक मसालेदार नॉनवेज भोजन
अंडे की जर्दी
3. प्रोसेस्ड और जंक फूड :-
पैकेज्ड स्नैक्स (चिप्स, नमकीन)
केक, पेस्ट्री, कुकीज
कार्बोनेटेड ड्रिंक्स और कोल्ड ड्रिंक्स
4. ज्यादा नमक और चीनी वाली चीजें :-
अधिक मिठाइयां और मीठे पेय
अधिक नमक वाले भोजन (अचार, पापड़, सॉस)
5. शराब और कैफीन :-
एल्कोहल (शराब) पूरी तरह से बंद कर दें
अधिक चाय और कॉफी न पिएं
6. कच्चे और भारी पचने वाले खाद्य पदार्थ :-
कच्ची पत्तेदार सब्जियां (पालक, मेथी)
अधिक फाइबर वाले फल जैसे कटहल
अधिक मसालेदार और चटपटी चीजें
13. पीलिया रोग में क्या सावधानियां बरतनी चाहिए ➡️
पीलिया रोग में सावधानियां बहुत ज़रूरी होती हैं ताकि बीमारी जल्दी ठीक हो और शरीर को नुकसान न पहुंचे। निम्नलिखित सावधानियां बरतनी चाहिए :-
1.खान-पान में सावधानी :-
हल्का और सुपाच्य भोजन करें : – दलिया, खिचड़ी, मूंग दाल, उबली हुई सब्ज़ियां आदि खाएं।
तला-भुना और मसालेदार भोजन न खाएं : – यह पाचन तंत्र को नुकसान पहुंचा सकता है।
प्रोटीन का संतुलित सेवन करें :– अंडे का सफेद भाग, दही, पनीर आदि उचित मात्रा में लें।
मीठे पेय पदार्थ और जंक फूड से बचें :– कोल्ड ड्रिंक, प्रोसेस्ड फूड, मिठाइयों से परहेज करें।
भरपूर पानी पिएं :– नारियल पानी, गन्ने का रस (डॉक्टर की सलाह से), ग्लूकोज पानी, नींबू पानी आदि लें।
एल्कोहल और धूम्रपान से पूरी तरह बचें :– यह लिवर को और अधिक नुकसान पहुंचा सकता है।
2. स्वच्छता और देखभाल :-
साफ और ताजा खाना खाएं, बाहर के खाने से बचें।
हाथ धोकर ही खाना खाएं ताकि संक्रमण से बचा जा सके।
बर्तन , कपड़े और रहने की जगह स्वच्छ रखें।
3. आराम और दिनचर्या :-
पर्याप्त नींद लें और तनाव से बचें।
भारी व्यायाम और शारीरिक श्रम से बचें।
कोई भी दवा डॉक्टर की सलाह के बिना ने लें।
4. चिकित्सा पर ध्यान दें -
डॉक्टर के निर्देशों का पालन करें और नियमित जांच करवाएं।
कोई भी लक्षण बढ़े तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।
लिवर की कार्यक्षमता बढ़ाने के लिए डॉक्टर द्वारा सुझाए गए सप्लीमेंट्स लें।
यदि पीलिया गंभीर रूप में हो या लंबे समय तक बना रहे, तो तुरंत चिकित्सा सहायता लें।
14. पीलिया में आयुर्वेदिक इलाज ➡️
1. उचित भोजन और नियमित व्यायाम पीलिया की चिकित्सा में महत्वपूर्ण हैं। लेकिन रोगी की स्थिति बेहद खराब हो तो पूर्ण विश्राम करना जरूरी है। पित्त वाहक नली में दबाव बढने और रूकावट उत्पन्न होने से हालत खराब हो जाती है। ऐसी गंभीर स्थिति में ५ दिवस का उपवास जरूरी है। उपवास के दौरान फलों का जूस पीते रहना चाहिये। संतरा, नींबू ,नाशपती , अंगूर , गाजर ,चुकंदर ,गन्ने का रस पीना फायदेमंद होता है।
2. रोगी को रोजाना गरम पानी का एनीमा देना कर्तव्य है। इससे आंतों में स्थित विजातीय द्रव्य नियमित रूप से बाहर निकलते रहेंगे और परिणामत: आंतों के माध्यम से अवशोषित होकर खून में नहीं मिलेंगे।
3. ५ दिवस के फलों के जूस के उपवास के बाद ३ दिन तक सिर्फ फल खाना चाहिये। उपवास करने के बाद निम्न उपचार प्रारंभ करें-
4. सुबह उठते ही एक गिलास गरम पानी में एक नींबू निचोडकर पियें।
5. नाश्ते में अंगूर ,सेव , पपीता ,नाशपती तथा गेहूं का दलिया लें । दलिया की जगह एक रोटी खा सकते हैं।
6. मुख्य भोजन में उबली हुई पालक, मैथी ,गाजर , दो गेहूं की चपाती और ऐक गिलास छाछ लें।
7. करीब दो बजे नारियल का पानी और सेवफल का जूस लेना चाहिये।
8. रात के भोजन में एक कप उबली सब्जी का सूप , गेहूं की दो चपाती ,उबले आलू और उबली पत्तेदार सब्जी जैसे मैथी ,पालक ।
9. रात को सोते वक्त ऐक गिलास मलाई निकला दूध दो चम्मच शहद मिलाकर लें।
10. सभी वसायुक्त पदार्थ जैसे घीं ,तेल , मक्खन ,मलाई कम से कम १५ दिन के लिये उपयोग न करें। इसके बाद थोडी मात्रा में मक्खन या जेतून का तैल उपयोग कर सकते हैं। प्रचुर मात्रा में हरी सब्जियों और फलों का जूस पीना चाहिेयें। कच्चे सेवफल और नाशपती अति उपकारी फल हैं।
11. दालों का उपयोग बिल्कुल न करें क्योंकि दालों से आंतों में फुलाव और सडांध पैदा हो सकती है। लिवर के सेल्स की सुरक्षा की दॄष्टिं से दिन में ३-४ बार निंबू का रस पानी में मिलाकर पीना चाहिये।
12. मूली के हरे पत्ते पीलिया में अति उपादेय है। पत्ते पीसकर रस निकालकर छानकर पीना उत्तम है। इससे भूख बढेगी और आंतें साफ होंगी।
13. टमाटर का रस पीलिया में लाभकारी है। रस में थोडीं नमक और काली मिर्च मिलाकर पीये। स्वास्थ्य सुधरने पर एक दो किलोमीटर घूमने जाएं और कुछ समय धूप में रहें। अब भोजन ऐसा होना चाहिये जिसमें पर्याप्त प्रोटीन, विटामिन सी ,विटामिन ई और विटामिन बी काम्पलेक्स मौजूद हों। पूरी तरह स्वस्थ होने के बाद भी भोजन के मामले में लापरवाही न बरतें।
नोट - इस आर्टिकल में उल्लिखित सलाह और सुझाव केवल सामान्य सूचना हेतु है। इन्हीं किसी पेशेवर चिकित्सा सलाह के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए। अगर कोई परेशानी हो तो अपने डॉक्टर से सलाह लें।
✍️ मंजीत सनसनवाल 🤔