https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1494766442523857 सूर्य सेन का जीवन परिचय

सूर्य सेन का जीवन परिचय

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सूर्य सेन का जीवन परिचय 


सूर्य सेन का जीवन परिचय


👉  इस आर्टिकल में हम सूर्य सेन ने जीवन परिचय पर बात करेंगे। सूर्य सेन जैसे अनेकों वीरों ने भारत को आजाद कराने के लिए अपना सारा जीवन आजादी की लड़ाई में खो दिया। अनेक ऐसे वीर सपूत जिन्होंने देश की आजादी की लड़ाई में अपने प्राणों की आहुति दी। उन्हीं में से एक थे सूर्य सेन 


जन्म  22 मार्च 1894

मृत्यु   12 जनवरी 1934


सूर्य सेन द्वारा किए गए कुछ महत्वपूर्ण कार्य ➡️


1. मास्टर सूर्य सेन जी ने 11 जनवरी को अपने एक मित्र को अपने को अंतिम पत्र लिखा था कि मृत्यु मेरा दरवाजा खटखटा रही है।‌ मेरा मन अंनत की ओर बह रहा है। मेरे लिए यह वो पल है। जब मैं अपनी मृत्यु को अपने परम मित्र के रूप में अंगीकार करु। इस सोभाग्यशील पवित्र और निर्णायक पल में मैं तुम सबके के लिए क्या छोड़ कर जा रहा हूं। सिर्फ एक चीज - मेरा सपना स्वतंत्रत भारत का है। प्रिय मित्रों आगे बढ़ो और कभी अपने कदम पीछे मत खींचना। उठो और कभी निराश मत होना। सफलता अवश्य मिलेगी। अंतिम समय में भी उनकी आंखों स्वर्णिम भविष्य का सपना देख रही थी।


2. सूर्य सेन भारत की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने वाले प्रसिद्ध क्रांतिकारीयों और अमर शहीदों में गिने जाते है। भारत भूमि पर अनेकों शहीदों ने क्रांति की लड़ाई में अपने प्राणों की आहुति देकर आजादी की राहों को रोशन किया है। इन्हीं में से एक सूर्य सेन नेशनल हाई स्कूल में उच्च स्नातक शिक्षक के रूप में कार्यरत थे। जिस कारण लोग उन्हें प्यार से मास्टर दा कहते थे। चटगांव आर्मी रेड के नायक मास्टर सूर्य सेन ने अंग्रेज़ सरकार को चुनौती दी थी।


3. सरकार उनकी वीरता और साहस से इस प्रकार हिल गयी थी कि जब उन्हें पकड़ा गया। तो उन्हें ऐसी हदय विदारक व अमानवीय यातानाएं दी गई। जिन्हें सुनकर ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं। गुरिल्ला युद्ध वर्ष 1923 तक मास्टर दा ने चटगांव के कोने - कोने तक फैला दिया था। साम्राज्यवादी सरकार क्रूरतापूर्वक क्रांतिकारीयों के दमन में लगी हुई थी। साधनहीन युवक एक ओर अपनी जान हथेली पर रखकर निरंकुश साम्राज्य से सीधे संघर्ष कर रहे थे तो वहीं दूसरी और उन्हें धन और हथियारों की कमी भी हमेशा बनी रहती थी।


4. इसी कारण मास्टर सूर्य सेन ने सीमित संसाधनों को देखते हुए सरकार से गुरिल्ला युद्ध करने का निश्चित किया और अनेक क्रांतिकारी धटनाओं को अंजाम दिया। यह सरकार को खुला सन्देश था कि भारतीय युवा का मन अब प्राण देकर भी दासता की बेड़ियों को तोड़ देना चाहता है।



5. सैनिक शस्त्रागार की लूट ➡️


पूर्व योजनानुसार 18 अप्रैल 1930 को सैनिक वस्त्रों में इन युवाओं ने गणेश धोष और लोकनाथ बल के नेतृत्व में दो दल बनायें। गणेश धोष के दल ने चटगांव के पुलिस शस्त्रागार पर और लोकनाथ जी के दल ने चटगांव के सहायक सैनिक शस्त्रागार पर कब्जा कर लिया। किंतु दुर्भाग्यवश उन्हें बंदूकें तो मिलीं। किंतु उनकी गोलियां नहीं मिल सकीं। क्रांतिकारीयों ने टेलीफोन और टेलीग्राम के तार काट लिएं और रेलमार्गों को अवरूद्ध कर दिया। एक प्रकार से चटगांव पर क्रांतिकारीयों का ही कब्जा हो गया। इसके बाद यह दल पुलिस शस्त्रागार के सामने इक्ट्ठा हुआ। जहां मास्टर सूर्य सेन ने अपनी इस सेना से विधिवत सैन्य सलामी ली। राष्ट्रीय ध्वज फहराया और भारत की अस्थायी सरकार की स्थापना की।




6. अंग्रेज सैनिकों से संघर्ष ➡️


इस दल को अंदेशा था की इतनी बड़ी धटना पर अंग्रेज सरकार तिलमिला जायेगी। इसलिए वह गोरिल्ला युद्ध गोरिल्ला युद्ध के लिए तैयार थे। इसी उद्देश्य के लिए यह लोग शाम होते ही चटगांव नगर के पास की पहाड़ियों में चले गए। किन्तु स्थिति दिन पर दिन कठिनतम होती जा रही थी। बाहर अंग्रेज पुलिस उन्हें हर जगह ढूंढ रही थी। वहीं जंगली पहाड़ियों पर क्रांतिकारीयों को भूख - प्यास व्याकुल किये हुए थी। अंततः 22 अप्रैल 1930 को हजारों अंग्रेज सैनिकों ने जलालाबाद पहाड़ियों को धेर लिया। जहां क्रांतिकारियों ने शरण लें रखी थी। ऐसी विपरीत परिस्थितियों में भी क्रांतिकारीयों ने समर्पण नहीं किया और हथियारों से लैस अंग्रेज सेना से गोरिल्ला युद्ध किया।


7. इन क्रांतिकारीयों की वीरता और गोरिल्ला युद्ध - कोशल का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इस जंग में जहां 80 से भी ज्यादा अंग्रेज सैनिक मरे गए। वहीं मात्र 12 क्रांतिकारी ही शहीद हुए। इसके बाद मास्टर सूर्य सेन किसी प्रकार अपने साथियों सहित पास के गांव में चलें गए। उनके कुछ साथी कलकत्ता ( वर्तमान कोलकाता ) चले गए। लेकिन इनमें कुछ दुर्भाग्य से पकड़े गए। अंग्रेज पुलिस किसी भी तरह से सूर्य सेन को पकड़ना चाहती थी। वह हर तरफ उनकी तलाश कर रही थी।


8. सरकार ने सूर्य सेन पर दस हजार का इनाम भी घोषित कर दिया। जब सूर्य सेन पाटिया के एक विधवा स्त्री सावित्री देवी के यहां शरण ले रखी थी। तभी 13 जून 1932 को कैप्टन कैमरुन ने पुलिस व सेना के साथ उस घर को धेर लिया। दोनों और गोलीबारी हुई। जिसमें कैप्टन कैमरुन मारा गया और सूर्य सेन अपने साथियों के साथ इस बार भी सुरक्षित निकल गए। इतना दमन और कठिनाइयां भी इन क्रांतिकारीयों को डिगा नहीं सकीं और जो क्रांतिकारी बच गए थे। उन्हें दोबारा खुद को संगठित कर लिया और अपनी साहसिक धटनाओं द्वारा सरकार के छक्के छुड़ाते रहे। ऐसी अनेक धटनाओं में वर्ष 1930 से 1932 के बीच 22 अंग्रेज अधिकारी और उनके लगभग 220 सहायकों की हत्याएं की गयी। ऐसे थे हमारे मास्टर सूर्य सेन जी। नमन है ऐसे स्वतंत्रता सेनानी को।


               ✍️    मंजीत सनसनवाल 🤔 





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