वासुदेव बलवंत फडके
👉 इस आर्टिकल के माध्यम से भारत के एक ऐसे स्वतंत्रता सेनानी की जानकारी प्रदान करेंगे। जिन्होंने देश की आजादी के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। लेकिन बड़े दुःख की बात है ऐसे स्वतंत्रता सेनानी को बहुत कम लोग जानते हैं। ऐसे बहुत से लोगों ने देश की आजादी के लिए अपने प्राणों की आहुति दी है। उन्हीं में से एक है वासुदेव बलवंत फडके।
👉 वासुदेव बलवंत फडके पर एक विस्तृत लेख ➡️
दिया था।ईनाम की घोषणा:महाराष्ट्र के सात ज़िलों में वासुदेव फड़के की सेना का ज़बर्दस्त प्रभाव फैल चुका था। अंग्रेज़ अफ़सर डर गए थे।
इस कारण एक दिन मंत्रणा करने के लिए विश्राम बाग़ में इकट्ठा थे। वहाँ पर एक सरकारी भवन में बैठक चल रही थी। 13 मई, 1879 को रात 12 बजे वासुदेव बलवन्त फड़के अपने साथियों सहित वहाँ आ गए। अंग्रेज़ अफ़सरों को मारा तथा भवन को आग लगा दी। उसके बाद अंग्रेज़ सरकार ने उन्हें ज़िन्दा या मुर्दा पकड़ने पर पचास हज़ार रुपए का इनाम घोषित किया। किन्तु दूसरे ही दिन मुम्बई नगर में वासुदेव के हस्ताक्षर से इश्तहार लगा दिए गए कि जो अंग्रेज़ अफ़सर रिचर्ड का सिर काटकर लाएगा, उसे 75 हज़ार रुपए का इनाम दिया जाएगा।
अंग्रेज़ अफ़सर इससे और भी बौखला गए।गिरफ़्तारी: 1857 ई. में अंग्रेज़ों की सहायता करके जागीर पाने वाले बड़ौदा के गायकवाड़ के दीवान के पुत्र के घर पर हो रहे विवाह के उत्सव पर फड़के के साथी दौलतराम नाइक ने पचास हज़ार रुपयों का सामान लूट लिया। इस पर अंग्रेज़ सरकार फड़के के पीछे पड़ गई।
कौन यह करतार सिंह सराभा जाने के लिए यहां क्लिक करें
वे बीमारी की हालत में एक मन्दिर में विश्राम कर रहे थे, तभी 20 जुलाई, 1879 को गिरफ़्तार कर लिये गए। राजद्रोह का मुकदमा चला और आजन्म कालापानी की सज़ा देकर फड़के को अदन भेज दिया गया।निधन:अदन पहुँचने पर फड़के भाग निकले, किन्तु वहाँ के मार्गों से परिचित न होने के कारण पकड़ लिये गए। जेल में उनको अनेक प्रकार की यातनाएँ दी गईं। वहाँ उन्हें क्षय रोग भी हो गया और इस महान देशभक्त ने 17 फ़रवरी, 1883 ई. को अदन की जेल के अन्दर ही प्राण त्याग दिए।