https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1494766442523857 शुक्रवार व्रत कथा

शुक्रवार व्रत कथा

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शुक्रवार व्रत कथा की संपूर्ण जानकारी


शुक्रवार व्रत कथा 

                                                                                                                                                         👉 अगर आप शुक्रवार को व्रत रखने की सोच रहे हैं हो तो आप को शुक्रवार व्रत की संपूर्ण जानकारी होनी चाहिए। शुक्रवार व्रत की कथा कथा है , शुक्रवार व्रत की विधि क्या है , शुक्रवार व्रत के मंत्र क्या हैं , शुक्रवार व्रत की आरती क्या है , शुक्रवार के व्रत कब शुरू करने चाहिए , कितने शुक्रवार के व्रत करने चाहिए , शुक्रवार व्रत के क्या लाभ है , शुक्रवार व्रत  सावधानियां बरतनी चाहिए , शुक्रवार व्रत में क्या खाना चाहिए , शुक्रवार व्रत में क्या नहीं खाना चाहिए , शुक्रवार व्रत में माता संतोषी जी को क्या चढ़ाना चाहिए , शुक्रवार व्रत का उद्यापन कैसे करें।                                                                                                                                                            👉 शुक्रवार व्रत कथा ➡️                                                                                                                  शुक्रवार के दिन मां संतोषी का व्रत-पूजन किया जाता है, जिसकी कथा इस प्रकार से है- एक बुढिय़ा थी, उसके सात बेटे थे। 6 कमाने वाले थे जबकि एक निक्कमा था। बुढिय़ा छहो बेटों की रसोई बनाती, भोजन कराती और उनसे जो कुछ झूठन बचती वह सातवें को दे देती। एक दिन वह पत्नी से बोला- देखो मेरी मां को मुझ पर कितना प्रेम है। वह बोली- क्यों नहीं, सबका झूठा जो तुमको खिलाती है। वह बोला- ऐसा नहीं हो सकता है। मैं जब तक आंखों से न देख लूं मान नहीं सकता। बहू हंस कर बोली- देख लोगे तब तो मानोगे।

कुछ दिन बाद त्यौहार आया। घर में सात प्रकार के भोजन और चूरमे के लड्डू बने। वह जांचने को सिर दुखने का बहाना कर पतला वस्त्र सिर पर ओढ़े रसोई घर में सो गया। वह कपड़े में से सब देखता रहा। छहों भाई भोजन करने आए उसने देखा, मां ने उनके लिए सुन्दर आसन बिछा नाना प्रकार की रसोई परोसी और आग्रह करके उन्हें जिमाया। वह देखता रहा। छहों भोजन करके उठे तब मां ने उनकी झूठी थालियों में से लड्डुओं के टुकड़े उठाकर एक लड्डू बनाया। जूठन साफ कर बुढिय़ा मां ने उसे पुकारा- बेटा, छहों भाई भोजन कर गए अब तू ही बाकी है, उठ तू कब खाएगा। वह कहने लगा- मां मुझे भोजन नहीं करना, मै अब परदेस जा रहा हूं। मां ने कहा- कल जाता हो तो आज चला जा। वह बोला- हां आज ही जा रहा हूं। यह कह कर वह घर से निकल गया। चलते समय पत्नी की याद आ गई।वह गौशाला में कण्डे थाप रही थी।वहां जाकर बोला- हम जावे परदेस आवेंगे कुछ काल, तुम रहियो संन्तोष से धर्म आपनो पाल। वह बोली- जाओ पिया आनन्द से हमारो सोच हटाय, राम भरोसे हम रहें ईश्वर तुम्हें सहाय।दो निशानी आपनी देख धरूं में धीर, सुधि मति हमारी बिसारियो रखियो मन गम्भीर।

वह बोला- मेरे पास तो कुछ नहीं, यह अंगूठी है सो ले और अपनी कुछ निशानी मुझे दे।वह बोली- मेरे पास क्या है, यह गोबर भरा हाथ है. यह कह कर उसकी पीठ पर गोबर के हाथ की थाप मार दी।वह चल दिया, चलते-चलते दूर देश पहुंचा।वहां एक साहूकार की दुकान थी। वहां जाकर कहने लगा- भाई मुझे नौकरी पर रख लो।साहूकार को जरूरत थी, बोला- रह जा।लड़के ने पूछा- तनखा क्या दोगे।साहूकार ने कहा- काम देख कर दाम मिलेंगे।साहूकार की नौकरी मिली, वह सुबह 7 बजे से 10 बजे तक नौकरी बजाने लगा।कुछ दिनों में दुकान का सारा लेन-देन, हिसाब-किताब, ग्राहकों को माल बेचना सारा काम करने लगा।साहूकार के सात-आठ नौकर थे, वे सब चक्कर खाने लगे, यह तो बहुत होशियार बन गया। सेठ ने भी काम देखा और तीन महीने में ही उसे आधे मुनाफे का हिस्सेदार बना लिया। वह कुछ वर्ष में ही नामी सेठ बन गया और मालिक सारा कारोबार उसपर छोड़कर चला गया।

इधर उसकी पत्नी को सास ससुर दु:ख देने लगे, सारी गृहस्थी का काम कराके उसे लकड़ी लेने जंगल में भेजते।इस बीच घर के आटे से जो भूसी निकलती उसकी रोटी बनाकर रख दी जाती और फूटे नारियल की नारेली मे पानी।

एक दिन वह लकड़ी लेने जा रही थी, रास्ते मे बहुत सी स्त्रियां संतोषी माता का व्रत करती दिखाई दी।वह वहां खड़ी होकर कथा सुनने लगी और पूछा- बहिनों तुम किस देवता का व्रत करती हो और उसके करने से क्या फल मिलता है।यदि तुम इस व्रत का विधान मुझे समझा कर कहोगी तो मै तुम्हारा बड़ा अहसान मानूंगी। तब उनमें से एक स्त्री बोली- सुनों, यह संतोषी माता का व्रत है। इसके करने से निर्धनता, दरिद्रता का नाश होता है और जो कुछ मन में कामना हो, सब संतोषी माता की कृपा से पूरी होती है।

तब उसने उससे व्रत की विधि पूछी। वह बोली- सवा आने का गुड़ चना लेना, इच्छा हो तो सवा पांच आने का लेना या सवा रुपए का भी सहूलियत के अनुसार लाना। बिना परेशानी और श्रद्धा व प्रेम से जितना भी बन पड़े सवाया लेना। प्रत्येक शुक्रवार को निराहार रह कर कथा सुनना, इसके बीच क्रम टूटे नहीं, लगातार नियम पालन करना, सुनने वाला कोई न मिले तो धी का दीपक जला उसके आगे या जल के पात्र को सामने रख कर कथा कहना।जब कार्य सिद्ध न हो नियम का पालन करना और कार्य सिद्ध हो जाने पर व्रत का उद्यापन करना। तीन मास में माता फल पूरा करती है। यदि किसी के ग्रह खोटे भी हों, तो भी माता वर्ष भर में कार्य सिद्ध करती है, फल सिद्ध होने पर उद्यापन करना चाहिए बीच में नहीं। उद्यापन में अढ़ाई सेर आटे का खाजा तथा इसी परिमाण से खीर तथा चने का साग करना।आठ लड़कों को भोजन कराना, जहां तक मिलें देवर, जेठ, भाई-बंधु के हों, न मिले तो रिश्तेदारों और पास-पड़ोसियों को बुलाना। उन्हें भोजन करा यथा शक्ति दक्षिणा दे माता का नियम पूरा करना. उस दिन घर में खटाई न खाना।

यह सुन बुढ़िया के लड़के की बहू चल दी। रास्ते में लकड़ी के बोझ को बेच दिया और उन पैसों से गुड़-चना ले माता के व्रत की तैयारी कर आगे चली और सामने मंदिर देखकर पूछने लगी- यह मंदिर किसका है। सब कहने लगे संतोषी माता का मंदिर है, यह सुनकर माता के मंदिर में जाकर चरणों में लोटने लगी। दीन हो विनती करने लगी- मां मैं निपट अज्ञानी हूं, व्रत के कुछ भी नियम नहीं जानती, मैं दु:खी हूं। हे माता जगत जननी मेरा दु:ख दूर कर मैं तेरी शरण में हूं। माता को दया आई - एक शुक्रवार बीता कि दूसरे को उसके पति का पत्र आया और तीसरे शुक्रवार को उसका भेजा हुआ पैसा आ पहुंचा। यह देख जेठ-जिठानी मुंह सिकोडऩे लगे। लड़के ताने देने लगे- काकी के पास पत्र आने लगे, रुपया आने लगा, अब तो काकी की खातिर बढ़ेगी। बेचारी सरलता से कहती- भैया कागज आवे रुपया आवे हम सब के लिए अच्छा है. ऐसा कह कर आंखों में आंसू भरकर संतोषी माता के मंदिर में आ मातेश्वरी के चरणों में गिरकर रोने लगी. मां मैने तुमसे पैसा कब मांगा है। मुझे पैसे से क्या काम है। मुझे तो अपने सुहाग से काम है।  मै तो अपने स्वामी के दर्शन मांगती हूं। तब माता ने प्रसन्न होकर कहा-जा बेटी, तेरा स्वामी आवेगा।  यह सुनकर खुशी से बावली होकर घर में जा काम करने लगी।

अब संतोषी मां विचार करने लगी, इस भोली पुत्री को मैने कह तो दिया कि तेरा पति आवेगा लेकिन कैसे? वह तो इसे स्वप्न में भी याद नहीं करता। उसे याद दिलाने को मुझे ही जाना पड़ेगा। इस तरह माता जी उस बुढिय़ा के बेटे के पास जा स्वप्न में प्रकट हो कहने लगी- साहूकार के बेटे, सो रहा है या जागता है। वह कहने लगा- माता सोता भी नहीं, जागता भी नहीं हूं कहो क्या आज्ञा है? मां कहने लगी- तेरे घर-बार कुछ है कि नहीं। वह बोला- मेरे पास सब कुछ है मां-बाप है बहू है क्या कमी है। मां बोली- भोले पुत्र तेरी बहू घोर कष्ट उठा रही है, तेरे मां-बाप उसे त्रास दे रहे हैं। वह तेरे लिए तरस रही है, तू उसकी सुध ले। वह बोला- हां माता जी यह तो मालूम है, परंतु जाऊं तो कैसे? परदेश की बात है, लेन-देन का कोई हिसाब नहीं, कोई जाने का रास्ता नहीं आता, कैसे चला जाऊं? मां कहने लगी- मेरी बात मान, सवेरे नहा धोकर संतोषी माता का नाम ले, घी का दीपक जला दण्डवत कर दुकान पर जा बैठ। देखते-देखते सारा लेन-देन चुक जाएगा, जमा का माल बिक जाएगा, सांझ होते-होते धन का भारी ठेर लग जाएगा। 

अब बूढ़े की बात मानकर वह नहा धोकर संतोषी माता को दण्डवत धी का दीपक जला दुकान पर जा बैठा। थोड़ी देर में देने वाले रुपया लाने लगे, लेने वाले हिसाब लेने लगे। कोठे में भरे सामान के खरीददार नकद दाम दे सौदा करने लगे। शाम तक धन का भारी ठेर लग गया। मन में माता का नाम ले चमत्कार देख प्रसन्न हो घर ले जाने के वास्ते गहना, कपड़ा सामान खरीदने लगा। यहां काम से निपट तुरंत घर को रवाना हुआ।

उधर उसकी पत्नी जंगल में लकड़ी लेने जाती है, लौटते वक्त माताजी के मंदिर में विश्राम करती। वह तो उसके प्रतिदिन रुकने का जो स्थान ठहरा, धूल उड़ती देख वह माता से पूछती है- हे माता, यह धूल कैसे उड़ रही है? माता कहती है- हे पुत्री तेरा पति आ रहा है। अब तू ऐसा कर लकडिय़ों के तीन बोझ बना ले, एक नदी के किनारे रख और दूसरा मेरे मंदिर पर व तीसरा अपने सिर पर। तेरे पति को लकडिय़ों का गट्ठर देख मोह पैदा होगा, वह यहां रुकेगा, नाश्ता-पानी खाकर मां से मिलने जाएगा, तब तू लकडिय़ों का बोझ उठाकर जाना और चौक मे गट्ठर डालकर जोर से आवाज लगाना- लो सासूजी, लकडिय़ों का गट्ठर लो, भूसी की रोटी दो, नारियल के खेपड़े में पानी दो, आज मेहमान कौन आया है? माताजी से बहुत अच्छा कहकर वह प्रसन्न मन से लकडिय़ों के तीन गठ्ठर बनाई। एक नदी के किनारे पर और एक माताजी के मंदिर पर रखा। इतने में मुसाफिर आ पहुंचा। सूखी लकड़ी देख उसकी इच्छा उत्पन्न हुई कि हम यही पर विश्राम करें और भोजन बनाकर खा-पीकर गांव जाएं।  इसी तरह रुक कर भोजन बना, विश्राम करके गांव को गया। सबसे प्रेम से मिला। उसी समय सिर पर लकड़ी का गट्ठर लिए वह उतावली सी आती है। लकडिय़ों का भारी बाझ आंगन में डालकर जोर से तीन आवाज देती है- लो सासूजी, लकडिय़ों का गट्ठर लो, भूसी की रोटी दो। आज मेहमान कौन आया है।

यह सुनकर उसकी सास बाहर आकर अपने दिए हुए कष्टों को भुलाने हेतु कहती है- बहु ऐसा क्यों कहती है? तेरा मालिक ही तो आया है।आ बैठ, मीठा भात खा, भोजन कर, कपड़े-गहने पहिन।  उसकी आवाज सुन उसका पति बाहर आता है। अंगूठी देख व्याकुल हो जाता है।मां से पूछता है- मां यह कौन है? मां बोली- बेटा यह तेरी बहु है। जब से तू गया है तब से सारे गांव में भटकती फिरती है। घर का काम-काज कुछ करती नहीं, चार पहर आकर खा जाती है। वह बोला- ठीक है मां मैने इसे भी देखा और तुम्हें भी, अब दूसरे घर की ताली दो, उसमें रहूंगा. मां बोली- ठीक है, जैसी तेरी मरजी। तब वह दूसरे मकान की तीसरी मंजिल का कमरा खोल सारा सामान जमाया. एक दिन में राजा के महल जैसा ठाट-बाट बन गया. अब क्या था? बहु सुख भोगने लगी।

इतने में शुक्रवार आया। उसने पति से कहा- मुझे संतोषी माता के व्रत का उद्यापन करना है। पति बोला- खुशी से कर लो। वह उद्यापन की तैयारी करने लगी। जिठानी के लड़कों को भोजन के लिए कहने गई। उन्होंने मंजूर किया परन्तु पीछे से जिठानी ने अपने बच्चों को सिखाया, देखो, भोजन के समय खटाई मांगना, जिससे उसका उद्यापन पूरा न हो। लड़के जीमने आए खीर खाना पेट भर खाया, परंतु बाद में खाते ही कहने लगे- हमें खटाई दो, खीर खाना हमको नहीं भाता, देखकर अरूचि होती है। वह कहने लगी- भाई खटाई किसी को नहीं दी जाएगी।यह तो संतोषी माता का प्रसाद है। लड़के उठ खड़े हुए, बोले- पैसा लाओ, भोली बहु कुछ जानती नहीं थी, उन्हें पेसे दे दिए। लड़के उसी समय हठ करके इमली खटाई ले खाने लगे। यह देखकर बहु पर माताजी ने कोप किया। राजा के दूत उसके पति को पकड़ कर ले गए। जेठ जेठानी मन-माने वचन कहने लगे। लूट-लूट कर धन इकठ्ठा कर लाया है, अब सब मालूम पड़ जाएगा जब जेल की मार खाएगा।

बहु से यह सहन नहीं हुए। रोती हुई माताजी के मंदिर गई, कहने लगी- हे माता, तुमने क्या किया, हंसा कर अब भक्तों को रुलाने लगी। माता बोली- बेटी तूने उद्यापन करके मेरा व्रत भंग किया है। वह कहने लगी- माता मैंने कुछ अपराध किया है, मैने तो भूल से लड़कों को पैसे दे दिए थे, मुझे क्षमा करो। मै फिर तुम्हारा उद्यापन करूंगी। मां बोली- अब भूल मत करना। वह कहती है- अब भूल नहीं होगी, अब बतलाओ वे कैसे आवेंगे? मां बोली- जा पुत्री तेरा पति तुझे रास्ते में आता मिलेगा। वह निकली, राह में पति आता मिला। वह पूछी- कहां गए थे? वह कहने लगा- इतना धन जो कमाया है उसका टैक्स राजा ने मांगा था, वह भरने गया था। वह प्रसन्न हो बोली- भला हुआ, अब घर को चलो।

कुछ दिन बाद फिर शुक्रवार आया। वह बोली- मुझे फिर माता का उद्यापन करना है। पति ने कहा- करो। बहु फिर जेठ के लड़कों को भोजन को कहने गई। जेठानी ने एक दो बातें सुनाई और सब लड़कों को सिखाने लगी। तुम सब लोग पहले ही खटाई मांगना। लड़के भोजन से पहले कहने लगे- हमे खीर नहीं खानी, हमारा जी बिगड़ता है, कुछ खटाई खाने को दो।वह बोली- खटाई किसी को नहीं मिलेगी, आना हो तो आओ, वह ब्राह्मण के लड़के लाकर भोजन कराने लगी, यथा शक्ति दक्षिणा की जगह एक-एक फल उन्हें दिया. संतोषी माता प्रसन्न हुई।

माता की कृपा होते ही नवमें मास में उसके चन्द्रमा के समान सुन्दर पुत्र प्राप्त हुआ। पुत्र को पाकर प्रतिदिन माता जी के मंदिर को जाने लगी। मां ने सोचा- यह रोज आती है, आज क्यों न इसके घर चलूं। यह विचार कर माता ने भयानक रूप बनाया, गुड़-चने से सना मुख, ऊपर सूंड के समान होठ, उस पर मक्खियां भिन-भिन कर रही थी। देहली पर पैर रखते ही उसकी सास चिल्लाई- देखो रे, कोई चुड़ैल डाकिन चली आ रही है, लड़कों इसे भगाओ, नहीं तो किसी को खा जाएगी. लड़के भगाने लगे, चिल्लाकर खिड़की बंद करने लगे। बहु रौशनदान में से देख रही थी, प्रसन्नता से पगली बन चिल्लाने लगी- आज मेरी माता जी मेरे घर आई है। वह बच्चे को दूध पीने से हटाती है। इतने में सास का क्रोध फट पड़ा।वह बोली- क्या उतावली हुई है? बच्चे को पटक दिया। इतने में मां के प्रताप से लड़के ही लड़के नजर आने लगे। वह बोली- मां मै जिसका व्रत करती हूं यह संतोषी माता है। सबने माता जी के चरण पकड़ लिए और विनती कर कहने लगे- हे माता, हम मूर्ख हैं, अज्ञानी हैं, तुम्हारे व्रत की विधि हम नहीं जानते, व्रत भंग कर हमने बड़ा अपराध किया है, जग माता आप हमारा अपराध क्षमा करो। इस प्रकार माता प्रसन्न हुई। बहू को प्रसन्न हो जैसा फल दिया, वैसा माता सबको दे, जो पढ़े उसका मनोरथ पूर्ण हो। 

 

👉 शुक्रवार व्रत की विधि क्या है ➡️                                                                                                     व्रत रखने के लिए सुबह सूर्योदय से पहले उठकर घर को साफ-सुथरा करें। उसके बाद स्नान करके स्वच्छ कपड़े पहनें। दिन मन में मां लक्ष्मी के मंत्रों का जाप करते रहें।  शुक्रवार के व्रत में पूजा मुख्य रूप से शाम के समय सूर्य ढलने के बाद की जाती है। इसीलिए शाम के समय एक बार फिर से शुद्ध होकर भगवान के सामने बैठ जाएं। सामने एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर माता लक्ष्मी की प्रतिमा को स्थापित करें। मुट्ठीभर चावल को रखकर उसके ऊपर तांबे का जल से भरा लोटा रखें। उसके ऊपर एक कटोरी में सोने या चांदी का गहना रखें।अगर आपके पास कोई गहना नहीं है तो सिक्का भी रख सकते हैं। साथ ही एक गुलाब का फूल भी कटोरी में रखें।                                                                                                            वृहस्पति व्रत कथा की संपूर्ण जानकारी जाने के लिए यहां क्लिक                                                                                                                                                                                                                                                                                   👉 शुक्रवार व्रत के मंत्र ➡️                                                                                                                1. ॐ श्री महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णु पत्न्यै च धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात् ॐ॥


2. ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं श्रीं कुबेराय अष्ट-लक्ष्मी मम गृहे धनं पुरय पुरय नमः॥


3. ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं त्रिभुवन महालक्ष्म्यै अस्मांक दारिद्र्य  नाशय प्रचुर धन देहि देहि क्लीं ह्रीं श्रीं ॐ                                                                                                                                                                                                                                           4. ॐ ह्री श्रीं क्रीं श्रीं क्रीं क्लीं श्रीं महालक्ष्मी मम                                                                                         गृहे धनं पूरय पूरय चिंतायै दूरय दूरय स्वाहा ।                                                                                                                                                                  5. ॐ सर्वाबाधा विनिर्मुक्तो, धन धान्यः सुतान्वितः।


मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशयः ॐ ।।


6.ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद


प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्मयै नम:॥


7.ॐ सर्वाबाधा विनिर्मुक्तो, धन धान्यः सुतान्वितः।


मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशयः ॐ ।।


8.ऊँ श्रींह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ऊँ महालक्ष्मी नम:।।


9.आदि लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु परब्रह्म स्वरूपिणि।


यशो देहि धनं देहि सर्व कामांश्च देहि मे।


सन्तान लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु पुत्र-पौत्र प्रदायिनि।


पुत्रां देहि धनं देहि सर्व कामांश्च देहि मे।


10.ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्याधिपतये


धनधान्यसमृद्धिं मे देहि दापय स्वाहा॥


11.या रक्ताम्बुजवासिनी विलासिनी चण्डांशु तेजस्विनी।


या रक्ता रुधिराम्बरा हरिसखी या श्री मनोल्हादिनी॥


या रत्नाकरमन्थनात्प्रगटिता विष्णोस्वया गेहिनी।


सा मां पातु मनोरमा भगवती लक्ष्मीश्च पद्मावती ॥                                                                                                                                                                                                                                                                                                                     👉 शुक्रवार व्रत की आरती ➡️ 

जय संतोषी माता, मैया जय संतोषी माता।

अपने सेवक जन की सुख सम्पति दाता ।।

जय संतोषी माता....

 

सुन्दर चीर सुनहरी मां धारण कीन्हो।

हीरा पन्ना दमके तन श्रृंगार लीन्हो ।।

जय संतोषी माता....                                                                                                                                                                                                      गेरू लाल छटा छबि बदन कमल सोहे।

मंद हंसत करुणामयी त्रिभुवन जन मोहे ।।

जय संतोषी माता....

 

स्वर्ण सिंहासन बैठी चंवर दुरे प्यारे।

धूप, दीप, मधु, मेवा, भोज धरे न्यारे।।

जय संतोषी माता....

 

गुड़ अरु चना परम प्रिय ता में संतोष कियो।

संतोषी कहलाई भक्तन वैभव दियो।।

जय संतोषी माता....

 

शुक्रवार प्रिय मानत आज दिवस सोही।                                    


भक्त मंडली छाई कथा सुनत मोही।।

जय संतोषी माता....

 

मंदिर जग मग ज्योति मंगल ध्वनि छाई।

बिनय करें हम सेवक चरनन सिर नाई।।

जय संतोषी माता....

 

भक्ति भावमय पूजा अंगीकृत कीजै।

जो मन बसे हमारे इच्छित फल दीजै।।

जय संतोषी माता....                                                                                                                                                                                                     दुखी दारिद्री रोगी संकट मुक्त किए।

बहु धन धान्य भरे घर सुख सौभाग्य दिए।।

जय संतोषी माता....

 

ध्यान धरे जो तेरा वांछित फल पायो।

पूजा कथा श्रवण कर घर आनन्द आयो।।

जय संतोषी माता....

 

चरण गहे की लज्जा रखियो जगदम्बे।

संकट तू ही निवारे दयामयी अम्बे।।                                                                                                                                                                                 जय संतोषी माता....

 

संतोषी माता की आरती जो कोई जन गावे।

रिद्धि सिद्धि सुख सम्पति जी भर के पावे।।

जय संतोषी माता....                                                                                                                                                                                                        👉 शुक्रवार के व्रत कब शुरू करने चाहिए  ➡️                                                                                    शुक्रवार का व्रत शुक्ल पक्ष के प्रथम शुक्रवार से शुरू करना चाहिए। माता संतोषी के 16 शुक्रवार तक व्रत करने से सुख-सौभाग्य की प्राप्ति होती है। ध्यान रखें कि पितृ पक्ष में किसी भी व्रत की शुरुआत नहीं करनी चाहिए।                                                                                                                                                                                                              👉 शुक्रवार कितने व्रत करने चाहिए ➡️                                                                                       अगर कोई भक्त शुक्रवार को मां संतोषी का व्रत रख रहा है तो उसे 9, 11 और 21 शुक्रवार के लिए रखाना चाहिए, जो बेहद ही शुभ माना गया है। वहीं अंतिम शुक्रवार के दिन इस व्रत का उद्यापन करना चाहिए।                                                                                                                                                                                                                        👉 शुक्रवार व्रत के लाभ क्या हैं  ➡️                                                                                                     1. शुक्रवार व्रत से बहुत समय से रूके काम भी पूरे हो जाते हैं। कहा जाता है कि अगर किसी काम में रूकावट आ रही है तो आपको इस व्रत का पालन करना चाहिए।


2. शुक्रवार के व्रत से जीवन में सुख-शांति और समृद्धि प्राप्त होती है, जिससे परिवार में खुशहाली और सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है।


3. शुक्रवार के व्रत से अविवाहित कन्या को सुयोग्य वर की प्राप्ति होती है, इसीलिए अविवाहित कन्याएं इस व्रत को पूरे श्रद्धा भाव से करती हैं।


4. शुक्रवार के व्रत से परीक्षा में असफल हो रहे व्यक्ति को सफलता मिलती है। मान्यता है कि इस व्रत से परीक्षा में अपार सफलता प्राप्त होती है।


5. अगर आप बहुत दिनों से अदालत के चक्कर काट रहे हैं और कोई हल नहीं मिल रहा है, तो शुक्रवार के व्रत का पालन कीजिये। इससे अदालत में आपके केस का जल्द से जल्द निपटारा हो सकता है।                                                                                                                                                                                                                                                  6. शुक्रवार के व्रत से नि:संतान दंपत्ति को संतान सुख की प्राप्ति होती है, इस लिए विवाहित महिलाएं भी इस व्रत को पूरे श्रद्धा भाव से रखती हैं।


7. शुक्रवार के व्रत से व्यक्ति को धन की प्राप्ति होती है। इस व्रत से व्यापार में लगातार हो रहे घाटे से बचा जा सकता है।                                                                                                                                                                                                                👉 शुक्रवार के व्रत में क्या सावधानियां बरतनी चाहिए ➡️                                                                                           


                                                                         1. शुक्रवार व्रत के दौरान आटे का सेवन नहीं करना चाहिए। इसकी जगह आप कुट्टू और सिंघाड़े का आटा खा सकते हैं।

2. शुक्रवार व्रत में तामसिक भोजन का सेवन न करें।

3. शुक्रवार व्रत के दिन घर को साफ को रखें। कहा जाता है कि साफ सफाई वाले स्थान पर ही मां लक्ष्मी वास करती हैं।

4. इस दिन व्रती किसी का अपमान न करें और न ही किसी से लड़ाई-झगड़ा करें।

5. सनातन धर्म में दान करना उत्तम माना जाता है लेकिन इस दिन कुछ चीजों का दान नहीं करना चाहिए। शुक्रवार के दिन चांदी और चीनी का दान भूलकर भी नहीं करना चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से शुक्र ग्रह कमजोर होता है। इससे जीवन में सुख खत्म हो जाता है।

6. शुक्रवार व्रत के दौरान किसी से पैसों का लेन-देन करने से बचना चाहिए। कहा जाता है कि इस दिन पैसों का लेन-देन करने से धन की देवी मां लक्ष्मी नाराज हो जाती हैं। साथ ही धन की कमी होती है।                                                                                                                                                            👉 शुक्रवार व्रत में क्या खाना चाहिए ➡️                                                                                            1.सबसे अहम बात ये है कि संतोषी माता के व्रत में कभी भी कोई खट्टी चीज नहीं खानी चाहिए। व्रत रखने वाले के घर में इस दिन कोई खट्टी चीज नहीं आनी चाहिए। न ही घर का कोई भी सदस्य इस दिन खट्टा खाए


2.व्रत में आप मीठे का सेवन कर सकते हैं


3.कोई भी एक अनाज दिन में एक बार मीठे के साथ खा सकते हैं।

4. नमक का सेवन बिल्कुल भी न करें।                                                                                                                                                                            👉 शुक्रवार के व्रत क्या नहीं खाना चाहिए ➡️                                                                                      1.शुक्रवार के दिन सभी तरह के फास्ट फूड, बाहर के व्यंजनों से दूरी बनाकर रखनी चाहिए।                                                                                                                                                                           2. साथ ही तले-भुने, मसालेदार पदार्थ का सेवन नहीं करना चाहिए। आज के दिन संतुलित रूप से मसाले का उपयोग करना चाहिए।                                                                                                                                                                                 3. शुक्रवार के दिन किसी भी तरह के जीव, जंतु या मांसाहार का सेवन करना मना किया गया है। मांसाहार का सेवन करने पर माता संतोषी नाराज हो जाती हैं।                                                                                                                                                                                                                       👉 शुक्रवार व्रत में माता संतोषी जी को क्या चढ़ाना चाहिए ➡️                                                                                                                                        शुक्रवार को व्रत का संकल्प कर नहा धोकर, लाल रंग के वस्त्र पहनें।

अब पूजा के स्थान पर माता की पूजा के लिए एक चौकी के ऊपर लाल रंग का कपड़ा बिछा लें और उस पर मां संतोषी की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित कर दें। इसके साथ ही कलश की भी स्थापना करनी चाहिए।

अब मां संतोषी को सिंदूर, अक्षत, फूल और माला चढ़ाएं।

संतोषी माता को भोग में चना और गुड़ चढ़ाना शुभ माना जाता है, साथ ही केला भी उन्हें चढ़ाना चाहिए।

अब घी का दीपक जलाएं, धूप दिखाएं और व्रत कथा, चालीसा, मंत्र पढ़कर आरती करें।                                                                                                                                                                          👉 शुक्रवार व्रतों का उधपन कैसे करें  ➡️                                                                                             माता संतोषी का 16 शुक्रवार का व्रत करें और फिर उद्यापन कर लें। उद्यापन में चने की सब्जी और पूरी बनाई जाती है।साथ ही खीर बना लें।                                                                                                    नोट   इस आर्टिकल में निहित किसी भी जानकारी , सामग्री ,गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों , ज्योतिषियों , पंचांग , प्रवचनों , मान्यताओं , धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।                                                                                                                                       ✍️ मंजीत सनसनवाल 🤔

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