https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1494766442523857 कल्लूरी सीताराम राजू का जीवन परिचय

कल्लूरी सीताराम राजू का जीवन परिचय

6 minute read
0

कल्लूरी सीताराम राजू का जीवन परिचय 



कल्लूरी सीताराम राजू का जीवन परिचय


👉  ★★★ जन्म :


4 जुलाई, 1897,आंध्र प्रदेश


★★★ स्वर्गवास :


7 मई, 1924, विशाखापट्टनम


★★★ उपलब्धियां :


1. सीताराम राजू ने लोगों के मन से अंग्रेज शासन के डर को निकाल फेंकना और उन्हें  असहयोग में  भाग लेने  को प्रेरित किया। कल्लूरी सीताराम राजू भारत की आजादी लिए अपने प्राणों  का बलिदान करने वाले वीर क्रांतिकारी शहीदों में से एक थे। उन्हें औपचारिक शिक्षा बहुत कम मिल पाई थी। अपने एक संबंधी के संपर्क से वे अध्यात्म की ओर आकृष्ट हुए तथा 18 वर्ष की उम्र में ही साधु बन गए। सन 1920 में अल्लूरी सीताराम पर महात्मा गांधी के विचारों का बहुत प्रभाव पड़ा और उन्होंने आदिवासियों को मद्यपान छोड़ने तथा अपने विवाद पंचायतों में हल करने की सलाह दी। 


2. किंतु जब एक वर्ष में स्वराज्य प्राप्ति का गांधीजी का स्वप्न साकार नहीं हुआ तो सीताराम राजू ने अपने अनुयायी आदिवासियों की सहायता से अंग्रेज़ों के विरुद्ध सशस्त्र विद्रोह करके स्वतंत्र सत्ता स्थापित करने के प्रयत्न आंरभ कर दिए।क्रांतिकारियों से भेंट:पहली तीर्थयात्रा के समय वे हिमालय की ओर गये। 


3. वहां  उनकी मुलाक़ात महान क्रांतिकारी पृथ्वीसिंह आज़ाद से हुई। इसी मुलाक़ात के दौरान इनको चटगांव के एक क्रांतिकारी संगठन का पता चला, जो गुप्त रूप से कार्य करता था। सन 1919-1920 के दौरान साधु - सन्न्यासियों के बड़े-बड़े समूह लोगों में राष्ट्रीयता की भावना जगाने के लिए व संघर्ष के लिए पूरे देश में भ्रमण कर रहे थे। इसी अवसर का लाभ उठाते हुए सीताराम राजू ने भी मुम्बई, बड़ोदरा, बनारस, ऋषिकेश, बद्रीनाथ, असम, बंगाल और नेपाल तक की यात्रा की। इसी दौरान उन्होंने घुड़सवारी करना, तीरंदाजी, योग, ज्योतिष व प्राचीन शास्त्रों का अभ्यास व अध्ययन भी किया। 



4. वे काली माँ के उपासक थे। संन्यासी जीवन:अपनी तीर्थयात्रा से वापस आने के बाद सीताराम राजू कृष्णदेवीपेट में आश्रम बनाकर ध्यान व साधना आदि में लग गए। उन्होंने संन्यासी जीवन का निश्चय कर लिया था। दूसरी बार उनकी तीर्थ यात्रा का प्रयास नासिक की ओर था , जो उन्होंने पैदल ही पूरी की थी यह वह समय था जब पूरे भारत में असहयोग आन्दोलन चल रहा था। आन्ध्र प्रदेश में भी यह आन्दोलन अपनी चरम सीमा तक पहुंच गया था। इसी आन्दोलन को गति देने के लिए सीताराम राजू ने पंचायतों की स्थापना की और स्थानीय विवादों को आपस में सुलझाने की शुरुआत की। सीताराम राजू ने लोगों के मन से अंग्रेज़ शासन के डर को निकाल फेंका और उन्हें असहयोग आन्दोलन में भाग लेने को प्रेरित किया। 

5. क्रांतिकारी गतिविधियां : कुछ समय बाद सीताराम राजू ने गांधीजी के विचारों को त्याग दिया और सैन्य सगठन की स्थापना की। उन्होंने सम्पूर्ण रम्पा क्षेत्र को क्रांतिकारी आन्दोलन का केंद्र बना लिया। मालाबार का पर्वतीय क्षेत्र छापामार युद्ध के लिए अनुकूल था। इसके अलावा क्षेत्रीय लोगों का पूरा सहयोग भी उन्हें मिल रहा था। आन्दोलन के लिए प्राण तक न्यौछावर करने वाले लोग उनके साथ थे। 


6.इसीलिए आन्दोलन को गति देने के लिए गोदाम में गाम मल्लू डोरे और गाम गौतम डोरे बंधुओ को लेफ्टिनेंट बनाया गया। आन्दोलन को और तेज़ करने के लिए उन्हें आधुनिक शस्त्र की आवश्यकता थी। ब्रिटिश सैनिकों के सामने धनुष-बाण लेकर अधिक देर तक टिके रहना आसान नहीं था। इस बात को सीताराम राजू भली - भांति समझते थे। यही कारण था कि उन्होंने डाका डालना शुरू किया। इससे मिलने वाले धन से शस्त्रों को ख़रीद कर उन्होंने पुलिस स्टेशनों पर हमला करना शुरू किया। 


7. 22 अगस्त , 1922 को उन्हों
चिंतापल्ली में किया। अपने 300 सैनिकों के साथ शस्त्रों को लूटा उसके बाद कृष्णा देवी पेट के पुलिस स्टेशन पर हमला कर किया और विरयया डोरा को मुक्त करवाया। ब्रिटिश सरकार की चिंता कल्लूरी सीताराम राजू की बढ़ी गतिविधियां से अंग्रेज सरकार सतर्क हो गयी। ब्रिटिश सरकार जान चुकी थी की कल्लूरी राजू कोई सामान्य डाकू नहीं है। 







8. वे संगठित सैन्य शक्ति के बल पर अंग्रेज़ों को अपने प्रदेश से बाहर निकाल फेंकना चाहते है। सीताराम राजू को पकड़वाने के लिए सरकार ने स्कार्ट और आर्थर नाम के दो अधिकारियों को इस काम पर लगा दिया। सीताराम राजू ने ओजेरी गांव के पास अपने 80 अनुयायियों के साथ मिलकर दोनों अंग्रेज़ अधिकारियों को मार गिराया। इस मुठभेड़ में ब्रिटिशों के अनेक शास्त्र भी उन्हें मिल गए। इस विजय से उत्साहित सीताराम राजू ने अंग्रेजों को आंध्र प्रदेश छोड़ने की धमकी वाले इश्सतहार  पूरे क्षेत्र में लगवाये। इससे अंग्रेज अंग्रेज  सरकार और भी अधिक सजग हो गई। 



9. उसने सीताराम राजू को पकड़वाने वाले के लिए दस हज़ार रुपये इनाम की घोषणा करवा दी। उनकी गतिविधियों पर अंकुश लगाने के लिए लाखों रुपया खर्च किया गया। मार्शल लॉ लागू न होते हुए भी उसी तरह सैनिक बन्दोबस्त किया गया। फिर भी सीताराम राजू अपने बलबूते पर सरकार की इस कार्यवाही का प्रत्युत्तर देते रहे। 




10. ब्रिटिश सरकार लोगों में फुट डालने का काम सरकार करती थी, लेकिन अल्लूरी राजू की सेना में लोगों के भर्ती होने का सिलसिला जारी रहा।पुलिस से मुठभेड़:ब्रिटिश सरकार पर सीताराम  राजू के हमले लगातार जारी थे। उन्होंने छोड़ावरन , रामावरन , आदि ठिकानों पर हमले किए । उनके जासूसों का गिरोह सक्षम था , जिससे सरकारी योजना का पता पहले ही लग जाता था । उसकी चतुराई का पता इस बात से लग जाता है की जब पृथ्वीसिंह आज़ाद राजमहेन्द्री जेल में क़ैद थे, तब सीताराम राजू ने उन्हें आज़ाद कराने का प्रण किया। 




11.उनकी ताकत व संकल्प से अंग्रेज़ सरकार परिचित थी। इसलिए उसने आस-पास के जेलों से पुलिस बल मंगवाकर राजमहेंद्री जेल की सुरक्षा के लिए तैनात किया। इधर सीताराम राजू ने अपने सैनिकों को अलग - अलग जेलों पर एक साथ हमला करने की आज्ञा दी ।  इससे फायदा यह हुआ कि उनके भंडार में शस्त्रों की ओर वृद्धि हो गयी । उनके इन बढ़ते  हुए कदमों को रोकने के लिए सरकार ने असम रायफल्स नाम से एक सेना का संगठन किया।


12. जनवरी से लेकर अप्रैल तक यह सेना बीहड़ों और जंगलों में सीताराम राजू को खोजती रही। मई 1924 में अंग्रेज़ सरकार उन तक पहुंच गई। किरब्बु नामक स्थान पर दोनों सेनाओं के बीच घमासान युद्ध हुआ।शहादत:अल्लूरी राजू विद्रोही संगठन के नेता थे और असम रायफल्स का नेतृत्त्व उपेन्द्र पटनायक कर रहे थे। दोनों ओर की सेना के अनेक सैनिक मारे जा चुके थे। अगले दिन 7 मई को पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार सीताराम राजू को पकड़ लिया गया। 



13. उस समय सीताराम राजू के सैनिकों की संख्या कम थी । फिर भी गोंरती नामक एक सैन्य अधिकारी ने सीताराम राजू को पेड़ से बांधकर उन पर गोलियां बरसाई कल्लूरी सीताराम राजू के बलिदान के बाद भी अंग्रेज़ सरकार को विद्रोही अभियानों से मुक्ति नहीं मिली। इस प्रकार लगभग दो वर्षों तक ब्रिटिश सत्ता की नींद हराम करने वाला यह वीर सिपाही शहीद हो गया।


              ✍️      मंजीत सनसनवाल 🤔 

 












एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें (0)

Followers

To Top